Wednesday, September 30, 2009

~मिरिचिका~

मरती गयीं हर रोज़ मेरी रीश-ओ-फरहा,
अजब रहा तमाम उम्र ताकुब-ऐ-ताब-ऐ-सराह।
जिंदिगी रील के चक्के सी चली जाती है,
अहद-ओ-पेमान सब गुम हुए छलावे की तरहा।
एकदिन यूँही जिंदिगी की शाम ढल जायेगी,
अज़्म ही बस बाक़ी रहेगा नेक इरादे की तरहा।
२४.४.८
भावार्थ : रीश-ओ-फरहा = जड़ और टहनियां,
ताक्कुब =पीछा करना , ताब-ऐ-सराह = मिरिचिका,mirage chasing.
अहद-ओ-पेमान = वादे
अज़्म = इरादा .

~शिकायत~

क्या अब तुझ से शिकायत करते,
बुतों से कौन सी हिकायत करते?
समझदारों को इशारे ही काफ़ी,
कौन से लफ्जों की रिवायत करते?
हमने दरया भी पलटते हुए देखे हैदर*
क्या सराबों से उम्मीद-ऐ-इनायत करते?

भावार्थ : हिकायत = नसीहत , रिवायत = कहानी बयां करना,

सराबों = मिरिचिका का बहुवचन .

~ सफिने का सफर~

भेजा है सफीना बहर को आज वो;

देखिये लौट के आए, न आए आज वो।

सुतून-ऐ-रौशनी से इशारे तो लगते हैं,

करीब जा के कहीं निकले न सराब वो।

यह आखरी गश्त है इस कोहना बदन का,

आज कहीं निकले न वक्त ख़राब वो

एक नाविक के पास बस और क्या भला?

कुछ याद साहिलों की और बस तुराब वो।

१३.७.9

भावार्थ: सफीना= किश्ती, बहर= समंदर, सुतून-ऐ-रौशनी = लाइट हाउस

सराब= मिरिचिका, कोहना बदन = बूढी किश्ती , साहिलों = समंदर के किनारे

तुराब = समंदर के किनारे की रेत /मिटटी

~सलीब~

अच्छा हुआ जो रफीकों के जवाब नही आए,

सलीब पे लटकी हसरतों को ख्वाब नही आए।

जूनून-ऐ-जिंदिगी और उसके वोह सारे अज़ाब

क़दमों की आहट आती रही अहबाब नही आए।

तपते सेहरा और उनसे गुज़रती जिंदिगी,

धोके तो कई बार हुए; वो हुबाब नही आए ।

तेग्ज़नी अभी कुछ और बाक़ी रही हैदर* ;

खून-ऐ-वफ़ा सब तरफ़, रुबाब नही आए।

भावार्थ : रफीकों = दोस्तों के, सलीब= क्रॉस , ख्वाब= नींद/ ड्रीम

अहबाब= प्यारे दोस्त, हुबाब = बादल,

Teghzani = swordmanship, fencing.

Rubab= The ancient persian instrument of music containing numerous strings.

~बेगानगी ~

वक्त की बदलती करवटों से मै ही अनजाना सा रहा
मैं आशना तो खूब रहा ; मगर बेगाना सा रहा!
खमीर मुझ से ही बने पुरकैफ शराबों के ,
मैं ख़ुद तो उन्हें पी न सका मगर मस्ताना सा रहा!
हर आशनाई का हासिल एक नई उदासी देता गया,
क्या दोस्तों के हिस्से में भी बस पछताना सा रहा?
जंगल सिर्फ़ एक था, मैं रहता तो तू न रहा होता;
सुकूत अपना, तेरी बका के लिए, गोया मर जाना सा रहा!
जिंदिगी और भी न जाने हमें क्या दिखलाएगी?
हयात-ऐ- हैदर* भी जैसे मसाइल का कारखाना सा रहा।

शब्दार्थ : आशना = jaana पहचाना , खमीर= ferment,
पुरकैफ= मस्त कर देने वाली , सुकूत=Silence, बका =preservation

Wednesday, February 25, 2009

"मेरा शीशा"

बात उस दौर की है जब मई बिल्कुल नया नया था
शीशे में उभरते हुए अक्सों का एहसास नया नया था
शीशा-ऐ-दिल था चमकदार; मगर आबाद न था।
था तो काबा मेरे पास मगर आबाद न था॥
जब भी कोई सूरत मेरे दिल के करीब आई
अक्स देख के अपना वो घरीब घबरायी...
शीशा नया -नया हो तो हर बात बता देता है
कोई कितने gilaaf ओढ़ ले ये जातबता देता है
सभी jante हैं के maykash अगर warid-ऐ-जाम हो,
फिर ज़रूरी नही के botal पे हमेशा ही नाम हो।
lab tar हुए ,यह may का नाम बता देता है;
are नाम क्या cheez है?
यह khamar का paam बता देता है
अक्स देखने waale जब भी मेरे शीशे से डर गए;
toda उसे fauran कुछ इस tarha...
के yaaro " हम मर गए"!!!!!!!!!!